कुछ अनकही सी है,
तुम्हारे और मेरे बीच...
शायद एक अहसास,
जिसे कभी शब्द नहीं मिल सके...
मेरी आंखें जुबान बन गई,
ना जाने कितने लफ्ज उतरते चले गए...
लेकिन तुमने तो अपने दिल पर,
हाथ रख लिए थे,
कैसे सुनाई देते तुम्हें...
तुमने भी तो कितनी बातें की थीं...
मैं तुम्हारी आंखों में खोया,
उन्हें कैसे सुन पाता...
दिल तो खुला छोड़ रखा था,
बस, कानों पर हाथ रख लिए थे...
शायद एक अहसास जन्म लेने लगा था...
मैंने उसकी खुशबू ली थी...
तुम उसकी गंध,
क्यों नहीं पहचान पाई...
शायद कुछ और महक ने
उसके तीखेपन को कम कर दिया था...
मेरे चेहरे पर तुम्हारा नाम,
उभरने लगा था...
और मैं तुम्हारे चेहरे पर,
अपनी पहचान तलाश रहा था...
कि अचानक गुम हो गई तुम
और वो कुछ अनकही सी...
हमारे बीच ही रह गई...
तुम चली गई हमेशा के लिए....
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