जागती आंखों के सपने...
एक बार फिर देखे मैंने...
कमबख्त, आंखें खुली थी...
फिर भी, एक ख्वाब...
आंख खुलते ही...
सपने तो फिर भी टूट जाते हैं...
जागती आंखों के ख्वाब..
कैसे टूटे...
सपनों से झंझोड़कर...
कोई भी जगा जाता है...
आंखें खुली हो...
तो कोई कैसे रोके...
सपने देखने से...
ख्वाब देखने के बाद...
अक्सर ये सोचते हैं...
क्या छिपा था उसमें...
जागती आंखों के ख्वाब में...
क्या खंगाले...?
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